आपको बता दें कि, सूबे के जबलपुर में स्थित आयुष्मान अस्पताल के प्रबंधन स्टॉफ पर आरोप है कि, उन्होंने बच्चे की मौत के बाद भी उसका इलाज जारी रखा। यही नहीं, इस दौरान वो परिजन से दवाएं भी मंगवाते रहे और अलग-अलग कारणों से फीस भी वसूलते रहे।
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अस्पताल में परिजन का हंगामा
मामला रविवार का है, जब अस्पताल में एक 11 महीने बच्चे की मौत को लेकर उसके घर वाले हंगामा कर रहे थे। हंगामे की सूचना मिलते ही इलाके की ओमती थाना पुलिस मौके पर पहुंच गई। पुलिस ने हंगामा शांत कराने का प्रयास किया तो मृत बच्चे के परिवार वालों ने पूरा माजरा पुलिस के सामने बयान कर दिया। हालांकि, पुलिस की लंबी समझाइश के बाद मामला शांत हो गया। हालांकि, पुलिस ने जब मामले में अस्पताल प्रबंधन से सवाल किया तो उसने संबंधित आरोपों को सिरे से नकार दिया।
90 हजार खर्च, पर नहीं हो रहा था हालत में सुधार
दरअसल, सूबे के मंडला में रहने वाले शमशीर अली तीन दिन पहले बुखार आने पर अपने 11 महीने के बच्चे को लेकर मंडला के जिला अस्पताल पहुंचे थे। हालांकि, बच्चे की हालत में यहां कोई सुधार न होने पर वो शनिवार को उसे लेकर जबलपुर आ गए। यहां उन्होंने शहर के रसल चौक में स्थित आयुष्मान अस्पताल में अपने बच्चे को भर्ती करा दिया। इलाज के दौरान करीब 90 हजार तो खर्च हुए पर बच्चे की हालत में सुधार न आने पर परिजन ने डॉक्टर से बच्चे को मेडिकल अस्पताल ले जाने की बात कही। परिजन का आरोप है कि, इसपर डॉक्टर ने उनसे जल्द ही बच्चा ठीक हो जाने आश्वास्न देते हुए पैसों का इंतजाम करके मंगाई जा रही दवाएं लाते रहने को कहा।
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पिता का आरोप- बच्चे से मिलने को कहा तो प्रबंधन ने दरवाजा लगा दिया
मृतक बच्चे के पिता शमशीर अली ने बताया कि, रविवार शाम को अचानक उनके बच्चे की तबियत ज्यादा बिगड़ गई। हमें जैसे ही बच्चे की हालते बारे में बताया गया तो हमने तत्काल ही डॉक्टर से संपर्क किया। लेकिन, डॉक्टर ने तब भी बच्चा ठीक हो जाने का ही आश्वासन दिया। काफी देर इंतजार केबाद भी बच्चे की हालत में सुदार की कोई सूचना नहीं मिली तो पिता ने उसे मेडिकल कॉलेज ले जाने की जिद कर दी। इसपर अस्पताल प्रबंधन ने उसके कमरे का दरवाजा लगा दिया, ताकि हम बच्चे से मिल भी न सकें। करीब आधे घंटे गुजारिश के बाद जब अस्पताल ने उसे मेडिकल कॉलेज ले जाने के लिए दिया तो बच्चा पूरी तरह अचेत अवस्था में पड़ा था।
पैसे खत्म होने की बात कही तो नाराज हो गए डॉक्टर
मृतक बच्चे के पिता का आरोप है कि, अस्पताल के डॉक्टर किसी भी शर्त पर बच्चे को मेडिकल अस्पताल जाने नहीं दे रहे थे। वो बच्चे से मिलने तो दे नहीं रहे थे, फिर भी आश्वासन दे रहे थे कि, उनका बच्चा जल्द ही ठीक हो जाएगा। पिता ने आरोप लगाते हुए कहा कि, उनके बेटे की मौत काफी पहले ही हो चुकी थी। बावजूद इसके अस्पताल के डॉक्टर लगातार दवाएं मंगवाते रहे। आखिर में जब उनसे कहा गया कि, अब दवा लाने के पैसे नहीं बचे है, इसपर डॉक्टरों ने नाराजगी जताते हुए बच्चे को मेडिकल अस्पताल ले जाने को दे दिया। पिता का कहना है कि, पर उस समय उनका बच्चा जीवित नहीं था।
अस्पताल प्रबंधन ने आरोपों को सिरे से नकारा
वहीं, दूसरी तरफ आयुष्मान अस्पताल प्रबंधन ने मृतक बच्चे के घर वालों द्वारा लगाए जा रहे आरोपों को सिरे से गलत बताया है। अस्पताल प्रबंधक प्रतीक जैन के अनुसार, 11 महीने का बच्चा आशियान दिल का गंभीर रोगी था। उनका अनुसार, जिस समय परिजन बच्चे को लाए थे, तब उसका दिल मात्र 15 फीसदी ही काम कर रहा था। एक एमडी डॉक्टर बच्चे की निगरानी में लगातार मौजूद था। शाम होते-होते बच्चे की सांस उखड़ने लगीं, जिसके चलते उसे वेंटिलेटर लगाया गया था। प्रतीक जैन के अनुसार, बच्चे की नाजुक हालत के बारे में रात से ही परिजन को लगातार अपडेट दिये जा रहे थे।
उन्होंने ये भी कहा कि, पर जैसे ही बच्चे की मृत्यु की सूचना परिजन को दी गई तो वो बड़ी संख्या में अस्पताल परिसर में आ घुसे और यहां मौजूद स्टाफ के साथ मारपीट भी की। डॉक्टर पर भी हमले की कोशिश की। उनके साथ मौजूद महिलाओं ने नर्स से भी बदतमीजी की। इस दौरान उन्होंने अस्पताल में भी तोड़फोड़ की। वो इस बात का दबाव बना रेह थे कि, बच्चे की मौत के बाद उन्हें किसी तरह का बिल भुगतान न करना पड़े। अस्पताल प्रबंधक के अनुसार, उन्होंने आधी दवाइयों का भुगतान करने से भी इंकार कर दिया था।